गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

दवाओं को पीते रहे


हादसे क्या जान बूझ कर किए जाते कभी


जायेंगे ये किस हद तक , क्या सोच पाते कभी


अपने लिए ख़ुद ही , कोई कब्र खोदता नहीं


दूसरे के दर्द में , अपना दर्द खोजता नहीं


मत सेंकना तू रोटियाँ , आग जलती है कहीं


लकडियाँ हैं दूसरे की , तूने आगे खिसकाई कहीं


है दर्द उसके सीने में , नहीं है छलावा कोई


इन्सानियत की आँख से , नहीं होता दिखावा कोई


जब ख़ुद पर बीतती है , ठगे से ढूँढते हैं कोई देवदार कहीं


ये क्या लाया है , कर देगा तुझे भी लहुलुहान , झाड़-झंखाड़ कहीं


इन्सानियत के नाम पर , है इंसानियत शर्मिन्दा कहीं


दवाओं को पीते रहे , दुआओं को भूल आए कहीं


बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

दो चिडियाँ चूँ-चूँ करती हैं


















दो चिडियाँ चूँ-चूँ करती हैं
दो नन्हीं परियाँ सँग-सँग चलतीं हैं
मेरे बाग़ में , हंसती हैं और मचलती हैं
दो चिडियाँ चूँ-चूँ करती हैं

झट से यूँ मुस्का देती हैं
रंग सारे बिखरा देती हैं
मेरा आँगन सदा जोहता
बाट उनकी निहारे

बचपन बीता आई जवानी
सज गई फूलों की डाली
मेरे आँगन की खुशबू है
मेरा मन पुकारे


होली बीती आई दीवाली
रँग सारे रोशनी सा सज गए
तन मन रँग गए खुशी के रँग में
चिडियाँ , घोंसला सारे

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

तेरे उपहार बड़े छोटे हैं


तेरे उपहार बड़े छोटे हैं


मुझको इंतज़ार है , कुदरत के उपहारों का


तेरे उपहार बड़े फीके हैं


मुझको इंतजार है , किन्हीं दमदारों का


तेरी दुनिया में हेरा-फेरी है


उसकी दुनिया में तो बस देरी है


तेरी दुनिया में सब्र नहीं होता


राज उसके में अन्धेर नहीं होता


वो जो देता है झोलियाँ भर-भर के


पास उसके हर दौलत का अम्बार लगा


नाम अपना भी नहीं लेता


करता मालामाल है , बिन माँगे


उसकी मर्जी हो तो क्या नहीं होता


अदृशय सी इक आँख लिए , वो देखता है


खुदा बनी खुदी का दम देखता है



शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

सँसार सो चुका है


बचपन से जो साथ चला मेरे
रोमाँच और कौतुहल का
अहसास सो चुका है

कैसे भटकने देती इसे
कैसे करने देती मनमानी , जानती थी
सवार सो चुका है

घुँघरू की जगह मैंने बाँधी बेडियाँ
कोई देता दगा , विष्वास का भी
विष्वास सो चुका है

कितना पाया , कितना खोया
करने बैठी जब हिसाब तो
अध्याय सो चुका है

ख़ुद साकी आकर , भर मेरा प्याला
मेरे रुपहले पर्दे का
सँसार सो चुका है

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

लहलहा सकता है दिल का कोना


दिल की नाजुकताई देखिये
पकड़ लेता है सब अनकहा
छू लेता है सब अनछुआ
उसी रास्ते पर खड़ा हो जाता है
जिस पर चलने का दम नहीं

बेबस , बेकल अकेली सी राहें
अंधियारे की कँटीली सी बाहें
धूप इकट्ठी करनी क्या जरूरी थी !
जब मौसम तपता रहा
दिल हथेली में लिए बैठे रहे

उसको कब दिखता रहा !
तूने देखा वही जो न देखना चाहा
तूने पकड़ा वही जो न पकड़ना चाहा
बो सकता था फूल
चुन सकता था उजली किरणें

कैसा भी हो मौसम का मिजाज
कोई एक पल , कोई एक ठहराव
बन सकता है मील का पत्थर
जीने का लगाव
लहलहा सकता है दिल का कोना
जो है अनछुआ , अनकहा

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

बेशकीमती बना


जितनी नश्वर है ये , उतनी ही कीमती है


चीजों की मिआद होती है , जिन्दगी की मिआद भी नहीं होती


जिन्दगी की उम्र होती है , और नहीं भी होती


जितना पकड़ते हो , हाथों से छूटी जाती है


छूट जाती है , टूट जाती है , रूठ जाती है


मन के अहसास कहीं मिटते हैं


ये दिन रात साथ चलते हैं


रुका पानी गन्दला हो जाता है


वक़्त के साथ-साथ बहना होगा


जिन्दगी छूटे , टूटे या रूठे , तुझको चलना होगा


आलों में सजी क्रॉकरी , सिर्फ़ आँख सेंकने के काम आती है


रँगों भरे प्याले हैं हम , जिनसे दुनिया का कारोबार चले


मरने के बाद जिन्दा रहें , कीमत तो कर , बेशकीमती बना

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

प्यार तो कर


प्यार तो कर


पर थोड़ा-थोड़ा किनारा कर


कि जब वो किनारा करे


तो रोना पड़े , खन्भों से लिपट-लिपट कर


उसकी उन्नति के लिये जरूरी है


उतनी ही दवा दे , जितनी चलने के लिये जरूरी है


कैसी सुंदर ये दुनिया बनाई है


सुन्दर सुन्दर चेहरे


कैसी सुन्दर ये गढ़ाई है


लौटें घरौंदों को , आँखें तो बिछा


पर थोड़ा-थोड़ा किनारा कर


जब सहना पड़े उसे तेरा वियोग


तो वो रोये , खन्भों से लिपट-लिपट कर

सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

मेरे हौसले को हवा देना


कुछ इस अनुपात में हिम्मत मुझे तुम देना


जितना दुःख हो , उतना हिम्मत को बढ़ा देना


तपते गर्म थपेड़ों में , कोई ठण्डी सी हवा देना


स्याह रातों में , दीपक को जगह देना


बन्जर हो धरती फ़िर भी , फूलों की खुशबू देना


नीम बेहोशी में भी ,धरातल का कोई ख्वाब थमा देना


क़दमों में दम हो तो , कुछ और तेज चला देना


इक मकसद ख़त्म हो तो , दूसरा पकड़ा देना


मेरे हिस्से का कोई राज , चुपके से बता देना


तू जीते या मैं जीतूँ मन को , मेरे हौसले को हवा देना

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

हर कोई मालामाल है


कभी लगता बड़ा काम है , जी का जंजाल है


वक़्त नहीं मिलता और सोचों का मायाजाल है


खुदाया , क्या नजर का कुसूर है


चारों तरफ़ शेरों-गज़लों का राज है


कलम दवात उठाने की देर है , उतर आते हैं ये जिन्दगी में


क्या होता जिन्दगी में , गर करने को कुछ होता


क्या जीना होता वाजिब , गर लुटाने को कुछ होता


जिन्दगी तेरा सदका उतारने को जी चाहता है


हर कोई मालामाल है , बस नज़र का कुसूर है