शनिवार, 2 मई 2009

वजूद हैं बिखरे से



बादलों से गुजरे हैं
नमी है सागर सी

बेहोश हैं जन्मों से
मदहोशी है गुमानों की

तन्हाई की बातें हैं
वजूद हैं बिखरे से

आसमाँ में उड़ते हैं
जमीं से उखड़े से

मेले हैं अरमानों के
डोली है बहारों सी

गुलाबों की पोटली है
सपनों से छूटी सी

6 टिप्‍पणियां:

  1. बिखरे हुए वजूद को लिखा सहज समेट।
    होगी जब रचना नयी फिर से होगी भेंट।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. shardaji bahut hi sunder rachana dil ke kareeb,ankhon ki nami phir lat ke aayi.

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  3. बहुत सुन्दर भाव...आपकी यह रचना बहुत पसन्द आयी.

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