मंगलवार, 31 अगस्त 2010

तेरी चाँदनी बटोरी हमने

किश्तों में मिली
कैसा है सिला
जिन्दगी तेरे सिवा
कोई लुभा न पाया हमें

सहराँ की तपती रेत पर
साये की हसरत लिये
टुकड़ों में धूप बटोरी हमने

दरख्त के साये में
छन-छन के आती
धूप निहारी हमने

चाँद पहलू में लिये
चाँदनी की आरजू में
यूँ रात गुजारी हमने

कैसा है सिला
किश्तों में मिली
जिन्दगी , तेरी चाँदनी बटोरी हमने

रविवार, 22 अगस्त 2010

इसके सिवा कुछ भी नहीं मैं

मैं एक नन्हीं बच्ची हूँ
सारी उम्र ज़हन में ,
बचपन ही बोलता रहा
माँ सी कोई गोदी ,
पिता का सर पे हाथ ही खोजता रहा

मैं एक पत्नी हूँ
मन चकोर की तरह ,
पिया के इर्द-गिर्द ही डोलता रहा
सूरज चढ़ता उसी की देहरी पर ,
वही साँझ के पट खोलता रहा

मैं एक माँ हूँ
जिगर के टुकड़ों में मन ,
अपना ही अक्स टटोलता रहा
हर कोई ढूँढता है पहचान ,
रिश्तों को तोलता रहा
अपने ही वजूद का हिस्सा है जो ,
टुकड़ों में बोलता रहा

शनिवार, 14 अगस्त 2010

कुछ वतन की बात करें

पन्द्रह अगस्त पर ...
अपने दायरे से बाहर निकलें तो कुछ वतन की बात करें
काँटों से दामन छुड़ा लें तो खुशबु-ऐ-चमन की बात करें

उलझे हैं साथी में रोजी-रोटी में
हादसों से बाहर आ , सुकूने-वतन की बात करें

आसमान छूती हुई है हर शय
गिरी हमारी ही कीमत , अदबे-वतन की बात करें

इतरा कर झुक जाती वो डाली
मुस्कराती हो जिसकी हर कली , वफ़ा-ऐ-वतन की बात करें

सीने में समन्दर आ ठहरे
वीराँ भी गुलशन हो जाये , खुशबू-ऐ-वतन की बात करें

बिखरा हुआ तो हर फूल है उदास
सेहरे में गुँचा हो जाएँ , शाने-ऐ-वतन की बात करें

अपने दायरे से बाहर निकलें तो कुछ वतन की बात करें
काँटों से दामन छुड़ा लें तो खुशबु-ऐ-चमन की बात करें


रचना वर्मा की पोस्ट ' कहां है वो जज्बा ऐ आजादी ' पर आप आमंत्रित हैं

बुधवार, 11 अगस्त 2010

जख्म जो फूलों ने दिये

फूलों के जख्म यानि संवेदन-शील रिश्तों की मार के जख्म , सजा के बैठे थे फूलदानों में यानि रिश्तों को ..मार के जख्मों को ..दायरों की दीवारों में बाँध के बैठे थेअब ये पोस्ट वन्दना जी के नाम ..इस का श्रेय उनके ब्लॉग 'जख्म जो फूलों ने दिए ' को जाता है...
जख्म जो फूलों ने दिये
हाय सजा के बैठे थे , फूलदानों में
अहसास भूलों ने दिये
रुका पानी गन्दला हो जाता है
बहते जीवन में दर्द शूलों ने दिये
कितनी मासूमियत से खिलते हैं
वफ़ा की राह में वक्ती झूलों ने दिये
अपनों के हाथ अपनी नब्ज देखो तो
उठे जो हाथ उन्हीं वसीलों ने दिये
जख्म जो फूलों ने दिये

रविवार, 1 अगस्त 2010

तेरे मटके के पानी का वो हिस्सा

दोस्ती के जिस जज्बे ये नज्म लिखवाई , उस जज्बे को सलाम ...
आज फ्रेंडशिप डे है जी ...मेरी राहों के हमनवाँ
तेरे मटके के पानी का वो हिस्सा
जो सारे का सारा मेरा है
अब ये मेरी मर्जी है कि
मैं उसे पिऊँ या माथे से लगाऊँ
या फिर धोऊँ राहों के हादसे
और ये तेरी मर्जी है कि
तू उसे रक्खे हिफाज़त से या कि छलकाए
मेरा भी कुछ हक़ है उस पर
कि उसे तकती निगाहें मेरी भी हैं
तेरे मटके के पानी का वो हिस्सा
जो सारे का सारा मेरा है
इतनी भी नहीं सँग-दिल मैं
कि उसे बाँट न पाऊँ
जब जानती हूँ कि तेरे लिए मेरे जैसे कई और हैं
मेरे लिए इतनी है बहुत
मेरे हिस्से की धूप , सारी की सारी , पूरी की पूरी
मुझे तो रश्क है तुझ पर ,
क्या तुझे भी रश्क है अपनी रहनुमाई पर
तेरे मटके के पानी का वो हिस्सा