मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा (करवा चौथ पर )

किसी के जीवन का तू उजिआरा
सोलह कला सम्पूर्ण है तू
नित नया परिपूर्ण है तू
शाम ढले बज उठता मन का सँगीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा

इतराता बल खाता , निशा का साथी बन जाता
चन्दा तो है मन का प्रतीक
कह लेते हम कितनी बातें
जैसे तुझसे है जन्मों की प्रीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा

उगता गगन में नित नए आयाम लिये
प्रियतम का सा रूप लिये
करवा-चौथ को सारी सुहागिनें
माँगें और ढूँढें तेरी छवि में
अपने जीवन का मनमीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा

सारे उलाहने तुझसे हैं
खनकती चूड़ी बजती पायल
सारी दुआएँ तेरे सिर
तारों की चूनर गाये गीत
चन्दा ओ चन्दा , चन्दा ओ चन्दा

5 टिप्‍पणियां:

  1. उगता गगन में नित नए आयाम लिये
    प्रियतम का सा रूप लिये
    करवा-चौथ को सारी सुहागिनें
    माँगें और ढूँढें तेरी छवि में
    अपने जीवन का मनमीत...
    बहुत अच्छा लिखा है...
    इस पर्व पर सभी को मंगल कामनाएं.

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  2. बहुत सुंदर कविता, आप को करवा-चौथ की बधाई

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  3. चाँद पर इतनी सुंदर कविता ...... वो भी करवा चौथ के मौके पर...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर..... शुभकामनायें स्वीकारें...

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  4. चाँद पर इतनी सुंदर कविता ...... वो भी करवा चौथ के मौके पर...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर..... शुभकामनायें स्वीकारें...

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