रविवार, 6 मार्च 2011

आकाश को नहीं छोड़ा करते

जिस गली जाना न हो
उसका पता नहीं पूछा करते
सो गए ज्वालामुखी
चिन्गारी को नहीं छेड़ा करते

हश्र तो एक ही होता है
फना हो कर भी , लब पे लाया नहीं करते
मेरे मौला की मर्जी क्या है
हँसते हुओं को रुलाया नहीं करते

वक्त से पहले वक्त के सफ्हे
नहीं पलटा करते
इस लम्हे से पहले उस लम्हे तक
नहीं पहुंचा करते

यूँ बियाबान से नाता
नहीं जोड़ा करते
सूख जाते हैं जड़ों से
जीवन से मुहँ नहीं मोड़ा करते

एक ही बात कही
टूटते हुए तारों ने
टूटे हुए लम्हों की गिनती में
आकाश को नहीं छोड़ा करते

6 टिप्‍पणियां:

  1. जिस गली जाना न हो
    उसका पता नहीं पूछा करते
    सो गए ज्वालामुखी
    चिन्गारी को नहीं छेड़ा करते

    बहुत सार्थक सोच..बहुत सुन्दर रचना..

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  2. एक ही बात कही
    टूटते हुए तारों ने
    टूटे हुए लम्हों की गिनती में
    आकाश को नहीं छोड़ा करते

    बेहतरीन रचना।

    जवाब देंहटाएं

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