रविवार, 28 अगस्त 2011

पानी भूल आए घर

हौसले मेरे नहीं हैं टूटे हुए
पत्थरों से उलझ कर भी साबुत हूँ मैं
जिन्दगी यूँ कोई गीत , गुनगुनाती रही

तप रहा आसमाँ , राह तपती हुई
मँजिल यूँ मुझे बुलाती लगे
मेरे सिर पर धूप , कुनकुनाती रही

रेगिस्तानों की है यही खासियत
हर कोई तन्हा , अपने दम पर चले
पानी भूल आए घर , प्यास भुनभुनाती रही

समन्दर किनारे पहुँच कर भी तो
रेत तलियों की लहरें ले जाएँ घर
समन्दर हो के सहराँ ,
अपने हिस्से की छाया , कुनमुनाती रही

बुधवार, 17 अगस्त 2011

अन्ना हैं एक मशाल

अन्ना जैसे एक आन्दोलन का नाम , उन्हों ने जब एक मुहिम छेड़ी तो हजारों लोग उसमें शरीक हो गएये पीड़ा ही तो है जिसने सब को एक जुट कर दिया हैये भी सच है कि सिर्फ सरकार के कुछ लोग ही नहीं , भ्रष्टाचार आम आदमी की नस नस में भी समाया हुआ हैजिसको जहाँ मौका मिला है उसने हाथ जरुर आजमाया हैइसीलिए ये जरुरी है कि कुछ कानून कायदे देश चलाने वालों सहित सभी के लिये बनेंचाहते तो सभी यही थे मगर पहल करने वाले तो अन्ना हजारे ही हैं
पीड़ा है सबके उर में 
जिसकी है ये आवाज
अन्ना हैं एक मशाल
लेकर चले जो सबको साथ

मिटे जड़ से भ्रष्टाचार
हर खास आदमी आम
है आम आदमी ख़ास
क्यों कर हो कोई शिकार

महँगाई , बेरोजगारी
दिशाहीन है अपना समाज
लाठी है किसके हाथ
है नैतिकता क्यों नहीं ढाल

इतिहास ऋणी है उनका
औरों के लिये जो जीते
होते हैं कलमबद्ध वे ही
चलते हैं जो सीना तान

अन्ना हैं युग पुरुष
समय सीमा से परे
है दाँव पे जीवन उनका
गाँधी जी सी हैं मिसाल

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

कैसे करूँ पर्बत को राई

सारी दुनिया ऐसी पाई
पल में तोला पल में माशा
कैसे करूँ पर्बत को राई
अपनी फितरत देख तमाशा

दिल अपना और प्रीत पराई
दर्द की अपनी ये ही भाषा
छोड़ चला कोई राजाई
किसी का खेल किसी की आशा

मन्जर गर नहीं सुखदाई
बातेँ छोटी भी सुख की परिभाषा
दुखती रगें भी तो दवाई
साथी कभी , है प्रेरणा निराशा