सोमवार, 27 अगस्त 2012

दर्द तो है पर कज़ा नहीं है

जीवन कोई सज़ा नहीं है 
दर्द तो है पर कज़ा नहीं है 

तेरे साथ है दुनिया मुट्ठी में 
वरना कोई मज़ा नहीं है 

कितनी कर लीं हमने तदबीरें 
अपना कोई सगा नहीं है 

भट्ठी में तपता हर कोई 
फिर भी देखो जगा नहीं है 

सारी राहें रौशन उस से 
कहाँ भला वो खड़ा नहीं है 

मन है हमारे विचारों के बस में 
चेहरे पर क्या जड़ा नहीं है 

जीवन कोई सज़ा नहीं है 
दर्द तो है पर कज़ा नहीं है 

3 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन कोई सज़ा नहीं है
    दर्द तो है पर कज़ा नहीं है
    Wah! Waise samajh nahee patee hun,ki qaza kise kahte hain!

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  2. तेरे साथ तो सब मुट्ठी में
    वरना कोई मज़ा नहीं है !

    बेहद पसंद आयी आपकी रचना ...बधाई !

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