बुधवार, 5 मार्च 2014

ऐसी दुनिया में कैसे चलिये

ऐसी दुनिया में कैसे चलिये 
आदमी ठगा है हुआ 
औरों को ठगने निकला है 
एक ही लाठी से हाँक रहा सबको 
चरवाहा बना बैठा है 

चुप से देख रहे हैं 
सच पे चलना , अँगारों पे चलने जैसा क्यों है 
भोलापन है अगर पाप ,तो ये गुनाह किया है मैंने 
न बुलवाना कोई झूठ , के ये ज़मीर पे भारी है 
मगर मुझे भी खुदा चाहिये ,तेरी तरफदारी है 
रिश्तों को बिगाड़ लेना , है बहुत आसाँ 
सँभालने में बड़ी दुश्वारी है 
बनने से पहले आदमी का रँग उधड़ जाता है 
ज़र्रे-ज़र्रे उधड़े को कैसे सिलिये 

कलम का मन भारी है 
खोटे सिक्के सा नकारती है दुनिया 
ऐसी राहों पर कैसे चलिये 
खुद को कैसे छलिये 
ऐसी दुनिया में कैसे चलिये