रविवार, 15 फ़रवरी 2015

तक रहीं हैं दाएँ-बाएँ

बेटे के फिलीपींस जाने के बाद अगली सुबह उसके कमरे में जाने पर मेरी संवेदनाओं ने जो लिखा.....

तुम्हारे जाने के बाद
एक सन्नाटा सा पसरा है
तुम्हारा शेविंग ब्रश , तुम्हारी कँघी
और वाश-बेसिन पर रखीं न जाने कितनी चीजें 
तक रहीं हैं दाएँ-बाएँ
तुम्हारा इन्तजार करतीं हुईं सी लगतीं हैं
तुमने ये कहा
"न संभालना मेरा कब्बर्ड , मेरे जाने के बाद "
मुझे पता है के तुम चाहते हो
माँ ज्यादा काम न करे
पता है मुझे ये भी के तुम बड़े हो गये हो
तुम्हारे अन्तरंग पलों में मुझे झाँकना नहीं है
तुम्हें स्पेस चाहिये
ये भी पता है के किसे बुरा लगता है ,
जो बिछाये बैठा हो कोई सेज फूलों की उसके लिये
दुआएँ मेरी तो सदा गीत गाती ही मिलेंगी
दूर महके तेरा चमन बेशक
चीजें तो बेजान हैं ,
फिर भी बोलती हुईं सी लगतीं हैं
नाप लो चाहे तुम दुनिया सारी
माँ की दुनिया तो आबाद है
अब भी तुम्हारे बचपन के नन्हें क़दमों से
किसने जाना था
कि गुजरा हुआ इक-इक लम्हा मायने रखता है
गुजर जाने के बाद

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

मँहगाई कैसे न बढ़े

राशन की दुकानों में ' ए ग्रेड ' की जगह ' बी ग्रेड ' का माल बिका 
खानसामों ने अपने खाने के बहाने , अपने पूरे घर का पेट भरा 
तत्काल की सुविधा भी एजेन्टस के हाथ हुई 
हर जगह धाँधली ,मिलावट , मुनाफा-खोरी 
हर किसी ने किया ,जिसका जितना दाँव लगा 
सूद-खोरों , दलालों , कमीशन-खोरों की चाँदी हुई 
मिलावटी खाना , मिलावटी बातें ,मिलावटी ज़ेहन 
कहीँ से इँच भर भी तू खालिस न हुआ 
दौड़ता फिरता है किसके पीछे 
सोने सा जनम पा के भी मिट्टी ही किया 
मध्यस्थता खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिये थी 
भारत की अर्थव्यवस्था ये किसके हाथ हुई 
कुकुर-मुत्तों की तरह उगे बिचौलिओं की परसेन्टेज अनलिमिटेड और बन्दर-बाँट की तरह हुई 
मँहगाई कैसे न बढ़े , मँहगाई कैसे न बढ़े