सोमवार, 25 मई 2015

कुछ यादें रँग भर लेतीं हैं


तेरी छोटी बहना के कमरे की दीवार पर 
तेरी बनाई हुईं तितलियाँ 
पँखे की हवा में पँख हिलाने लगतीं हैं 
जैसे उड़ रहीं हों किसी गन्तव्य की ओर 

बदल लेते हैं हम घर अक्सर 
जैसे चुरा रहे हों नजरें खुद से 
मछली ,तितली और फूलों को देखा है अक्सर मन के कैनवस पर 
आसाँ है इन्हें बना पाना , तैरें उड़ें और फूल खिलें 
कुछ यादें रँग भर लेतीं हैं , और कोई कुशल चितेरा बन जाता है 
न जाने कितनी ही चीजें तेरे अहसास में गुम हैं 

तू उठ कर चली गई है 
मगर हम संजोये हुये हैं सब कुछ ऐसे 
जैसे हर सलवट को सजाये हैं 
तेरी नर्म उँगलियों के अहसास को गले से लगाये हैं 
जब जी चाहे बुला लेते हैं तुझे यादों में 
मेरी आस की तितलियाँ भी हौले से पँख हिलाने लगतीं हैं 
और फूल खिलने लगते हैं 

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