मंगलवार, 30 जून 2015

कोई इस तरह भी दुनिया से जाता है क्या......

वे मैं तड़फाॅ वाँग शुदाइयाँ 
वे आ मिल कमली देआ साइयाँ 

तू घोड़ी पे चढ़ा 

मैं डोली में बैठी 
सपना था यही , नींद टूटी , ओझल हुआ 
सात फेरों का क़र्ज़ है तुझ पर 
बरसों-बरस गुजर गये तेरी राह तकते-तकते 
नामलेवा नहीं मेरा कोई 
ये जनम तो तेरे नाम किया 
न पूछ के कैसे है कटा ये सफर 
मुझे और उम्मीद थी , और हुआ 
की रब ने बड़ी बेपरवाहियाँ वे 

हर किसी पे आती है जवानी 

किसी-किसी को मिलता है कद्र-दान 
किसी किसी का इश्क चढ़ता है परवान 
मैं किसी फरहाद की शीरी तो नहीं 
किसी राँझे की फ़रियाद नहीं 
किसी धरती का नाज़ नहीं 
आ , अपने कमण्डल से पानी जरा सा त्रौक 
शायद ये आँख लग जाये 

वे मैं तड़फाॅ वाँग शुदाइयाँ 

वे आ मिल कमली देआ साइयाँ 

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एक थी भिरावाँ


मंगलवार, 23 जून 2015

सिक्के बचपन की गुल्लक के

वक़्त के साथ जब आदमी आगे बढ़ता है तो कोई दिन तो आता है जब पुराना सब कुछ छोड़ कर उसे सिर्फ आगे देखना होता है ; यहाँ तक कि वो घर भी जिसमें बचपन बीता ,यादों के हवाले हो जाता है ...

मेरे बचपन का घर छूटे जाता है 
माँ-पापा की छत्र-छाया के अहसास का घर छूटे जाता है 
भाई-बहनों के साथ का घर छूटे जाता है 
यादों के अनगिनत लम्हे भी उतर आते हैं ज़ेहन में 
कसैली यादें तो लिपट जातीं हैं मेरे वज़ूद को नीम करेले की तरह 
दो बूँद आँसू ढुलक उठते हैं मेरे गालों पर 
और मीठे लम्हे तो मुस्करा उठते हैं गाहे-बगाहे 
लौट के आना बचपन का नामुमकिन है 
और यादों से भुला पाना भी मुश्किल है 
बचपन का खाया दूध-दही , मेरी रगों का खून सही 
वो बेफिक्री-मस्ती का आलम , आज भी मेरी चाह वही 
खन-खन बजने लगते हैं सिक्के बचपन की गुल्लक के 
माँ का लाड़-दुलार , पापा की हिफाज़त , भाई-बहनों के साथ का अहसास 
सखी-सहेलियों की आवा-जाही ,दादी चाचा-चाची के साथ उत्सव का सा माहौल 
इन सबके बिना अधूरा सा मेरा वज़ूद 
इसी घर में शैशव ने थी उँगली पकड़ी यौवन की 
इसी घर की दहलीज़ के बाहर दुनिया बहुत अलग थी 
वो बचपन की कौतुहल वाली आँख से दुनिया का परिचय 
मैं आज जो कुछ भी हूँ , उसी बचपन की बदौलत 
ये उजाले चलेंगे ताउम्र मेरे साथ-साथ 
मेरी भी उम्र जियेगा ये घर मेरे साथ-साथ 

गुरुवार, 4 जून 2015

तुम हो तो हम हैं

विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधों के लिये

मेरे पौधों ,खिलो तुम जान से प्यारों की तरह 
फूलो-फलो दुनिया में , सितारों की तरह 

पीने दो मुझे मीठी सी कोई चाह 
थिरकने दो किसी धुन पे ,धड़कनों की तरह 

आयेंगीं आँधियाँ भी , तूफ़ान उठेंगे 
गले लगो मेरे ,सदियों से बिछड़ों की तरह 

दर्द हर हाल में रँग छोड़ता है 
बदलो इसे माज़ी के हवालों की तरह 

मैं तुम्हारी सब कुछ तो नहीं बन सकती 
समझो मुझे दोस्त-माली सा , सायादारों की तरह 

ये कोई चुग्गा तो नहीं है डाला मैनें 
तुम भी जी लो दुनिया में ,ऐतबारों की तरह  

हमने जिसे माँगा है , फिज़ाएँ हैं वो 
तुम बिन कहाँ महकती हैं ,वो खुशबुओं की तरह 

धरती ,पर्वत ,बरखा-पानी , जानें तुम्हारी सारी मेहरबानी 
तुम हो तो हम हैं , तुम्हीं हो हमारी ज़िन्दगानी की तरह